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Bangladesh Hindu Man London High Commission Protest Hindus Khalistani Disruption

Bangladesh Hindu Man London High Commission Protest Hindus Khalistani Disruption

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बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हिंसा के खिलाफ लंदन में बांग्लादेश हाई कमीशन के बाहर हिंदू समुदाय के शांतिपूर्ण प्रदर्शन में खालिस्तानियों ने खलल डालने की कोशिश की.

लंदन में बांग्लादेश हाई कमीशन के बाहर आयोजित एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन उस समय विवादों में घिर गया, जब खालिस्तानी समर्थकों के एक समूह ने इसमें बाधा डाल दी. यह प्रदर्शन हिंदू समुदाय के नेतृत्व में आयोजित किया गया था, जिसका उद्देश्य बांग्लादेश में हिंदू युवक दीपु चंद्र दास की मौत को लेकर विरोध जाहिर करने का था. हालांकि, खालिस्तानी समूह ने भारत-विरोधी नारे और खालिस्तानी झंडे दिखाने लगे.

बांग्लादेश हाई कमीशन के बाहर मौजूद हिंदू प्रदर्शनकारियों ने कहा कि यह आयोजन पूरी तरह शांतिपूर्ण और मानवीय था, जिसका किसी भी देश की आंतरिक राजनीति से कोई लेना-देना नहीं था. उनका कहना था कि हाल के महीनों में बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से हिंदुओं, के खिलाफ हिंसा की घटनाएं चिंताजनक रूप से बढ़ी हैं.

कैसे हुई दीपु चंद्र दास की मौत?

मौके पर प्रदर्शनकारियों ने बांग्लादेश के मयमनसिंह में 29 वर्षीय कपड़ा फैक्ट्री में काम करने वाले दीपु चंद्र दास की हत्या का विशेष रूप से उल्लेख किया. आरोप है कि कथित ईशनिंदा के आरोपों के बाद उन्हें भीड़ ने पीट-पीटकर मार दिया था, फिर उनके शव को पेड़ से लटका कर जला दिया गया. यह घटना 18 दिसंबर की बताई गई है और इसने बांग्लादेश के भीतर और बाहर गहरा आक्रोश पैदा किया. क्रिसमस की पूर्व संध्या पर राजबाड़ी में अमृत मंडल की मौत का मामला भी प्रदर्शनकारियों ने उठाया. हालांकि बांग्लादेशी अधिकारियों ने कहा कि अमृत मंडल एक आपराधिक गतिविधि में शामिल था और स्थानीय लोगों से झड़प के दौरान उसकी मौत हुई, लेकिन प्रदर्शनकारियों का कहना है कि ऐसे मामलों में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल उठते हैं.

खालिस्तानी लोगों ने किया हस्ताक्षेप
प्रदर्शन के दौरान खालिस्तानी समर्थकों के हस्तक्षेप ने प्रदर्शनकारियों को हैरान कर दिया. चश्मदीदों के अनुसार, खालिस्तानी समूह ने भारत-विरोधी नारे लगाए और खालिस्तानी झंडे लहराए. यूके इनसाइट समूह से जुड़े मनु खजूरिया ने इस घटना पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, ''यह बेहद चौंकाने वाला था कि कट्टरपंथी तत्वों ने सद्भाव और अल्पसंख्यक अधिकारों की बात करने वालों को चुप कराने की कोशिश की.'' उन्होंने स्पष्ट किया कि यह प्रदर्शन किसी राजनीतिक एजेंडे के लिए नहीं, बल्कि मानवीय अधिकारों और शांति के समर्थन में था.

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