
Ethiopia Volcano Eruption: इथियोपिया में फटे ज्वालामुखी की राख से अब भारत को कोई खतरा नहीं है. इसके फटने से सल्फर डाई ऑक्साइड और राख का एक ढेर करीब 15 किमी की ऊंचाई तक पहुंचकर धुएं में तब्दील हो गया.
वो शांत था...बेहद शांत और ऐसी शांति में वो पिछले करीब 12 हजार साल से था, लेकिन अचानक वो फट पड़ा. फटा तो ऐसा फटा कि उसके धुएं का गुबार नदी-नाला-सागर-महासागर-पर्वत-पहाड़-पठार को पार करते हुए भारत भी पहुंच गया और राजधानी दिल्ली ने कुछ घंटों के लिए ही सही, लेकिन धुएं की चादर ओढ़ ली. अब धुआं छंट चुका है. दिल्ली का आसमान फिर से नीला है और लोगों के मन में सवाल हैं कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि जो 12 हजार साल से शांत था वो अचानक फट पड़ा.
15 किमी ऊंचा उठा राख का ढेर
अफ्रीका का इकलौता देश इथियोपिया जिसपर यूरोप कभी अपना कब्जा नहीं जमा सका. करीब-करीब 11 करोड़ लोग इस देश के नागरिक हैं. इसी देश में 12 हजार साल से सोया हुआ ज्वालामुखी अचानक से फट पड़ा है. इसके फटने से सल्फर डाई ऑक्साइड और राख का एक ढेर करीब 15 किमी की ऊंचाई तक पहुंचकर ऐसे धुएं में तब्दील हुआ है, जिसने लाल सागर को पार किया, यमन-ओमान को पार करता हुआ अरब की खाड़ी होता हुआ पाकिस्तान से हिंदुस्तान पहुंचा और अब यहां से वो चीन निकल गया है.
दिल्ली तक पहुंची गुब्बी ज्वालामुखी की आंच
जिस धुएं ने ये तबाही मचाई है, उसकी वजह है हेली गुब्बी ज्वालामुखी, जो इथियोपिया के अफार इलाके में है. हालांकि इस ज्वालामुखी के फटने से कोई जनहानि नहीं हुई है, लेकिन जहां-जहां भी धुएं का ये गुबार पहुंचा है, वहां लोगों को सांस लेने में थोड़ी तकलीफ हुई है और इस रूट की फ्लाइट्स को कुछ समय के लिए या तो रद्द या फिर डाइवर्ट करना पड़ा है क्योंकि राख की वजह से फ्लाइट के इंजन को नुकसान पहुंच सकता था. भारत में भी 11 फ्लाइट्स को रद्द करना पड़ा, क्योंकि राख दिल्ली तक पहुंच गई थी. सबसे बड़ा सवाल कि आखिर हेली गुब्बी क्यों फटा?
क्यों फटा हेली गुब्बी ज्वालामुखी?
इसे किसी ईंट-भट्ठे से या फिर अपने किचन में लगी चिमनी से समझते हैं. जब आप किचन में खाना बनाते हैं तो घर में धुआं भरता है और उसे निकालने के लिए आप चिमनी ऑन करते हैं. धुंआं चिमनी से होता हुआ बाहर चला जाता है और आपका घर धुएं से खाली हो जाता है. ठीक ऐसे ही ज्वालामुखी धरती की चिमनी होती है. धरती के अंदर भी गर्म लावा भरा है, गैस भरी है और राख भरी है. गर्म लावा बेहद हल्का होता है और सतह पर आने की कोशिश करता है.
धरती की टेक्टॉनिक प्लेट्स जब आपस में टकराती हैं तो उस वक्त ये लावा सतह पर आने की कोशिश करता है और ऐसे वक्त में ही वो धरती की ऊपरी सतह को फाड़कर बाहर आ जाता है. बाहर आने के साथ ही लावा जमता जाता है और पहाड़ जैसी आकृति बनती जाती है. इसको ही ज्वालामुखी कहते हैं. आसान भाषा में कहें तो धरती की अपनी चिमनी होती है.
अब चूंकि धरती बहुत बड़ी है तो इसके पास कई चिमनियां भी हैं. करीब-करीब 1500 से भी ज्यादा. इनमें से भी ज्यादातर प्रशांत महासागर के रिंग ऑफ फायर वाले इलाके में हैं, जहां सबसे ज्यादा भूकंप भी आता है और सबसे ज्यादा ज्वालामुखी विस्फोट भी होता है. अगर आंकड़ों में बात करें तो दुनिया का 90 फीसदी भूकंप और 75 फीसदी ज्वालामुखी विस्फोट इसी रिंग ऑफ फायर में होता है.
10-12 हजार साल से शांत ज्वालामुखी अचानक फटा
हेली गुब्बी क्यों फटा इसका सही-सही जवाब अभी किसी के पास नहीं है, क्योंकि पिछले 10-12 हजार साल के इतिहास में ये ज्वालामुखी हमेशा शांत रहा है, लेकिन आम तौर पर जितने भी ज्वालामुखी फटते हैं, उनकी वजह होती है धरती की टेक्टॉनिक प्लेट्स, जिनके हिलने की वजह से ज्वालामुखी में विस्फोट होता है क्योंकि प्लेट्स हिलने से ज्वालामुखी के अंदर भरे लावे पर दबाव बढ़ता है और वो धरती की सतह पर आने के लिए मचलने लगता है.
हेली गुब्बी एर्ता अले ज्वालामुखी श्रृंखला का हिस्सा है और उसका सबसे दक्षिणी भाग है. ये उस अफार रिफ्ट का हिस्सा है, जहां धरती की टेक्टॉनिक प्लेट्स लगातार खिसक रहीं हैं. यही वजह है कि इस इलाके के दूसरे ज्वालामुखी जैसे एर्टा एले को पहले से भी मॉनिटर किया जाता रहा है. हेली गुब्बी के शांत होने की वजह से किसी का ध्यान नहीं गया और जब ये फटा तो वैज्ञानिकों को संभलने का मौका नहीं मिला और वो कोई चेतावनी जारी नहीं कर पाए. अभी शुरुआती जानकारी के मुताबिक जो एर्ता एले ज्वालामुखी श्रृंखला है, उसके नीचे मैग्मा की दीवार है और 50 किमी की एक दीवार टूट गई है. इस दीवार के टूटने की वजह भूकंप है, जिसकी तीव्रता 4.7 थी.
इथियोपिया में आम लोगों के लिए बढ़ी परेशानी
अब आम लोगों और वैज्ञानिकों के लिए सवाल है कि आगे क्या होगा? आम लोगों सीधे इससे प्रभावित हैं. जो लोग प्रभावित हैं, वो छोटे किसान और पशुपालक हैं. इथियोपिया के अफार क्षेत्र में जहां ज्वालामुखी विस्फोट हुआ है, वो रेगिस्तानी इलाका है, जहां छोटे-छोटे गांव हैं. इन गांवों में राख फैल गई है, जिससे पशुओं के चारे का संकट हो गया है.
अगर ये राख जल्दी ही नहीं हटती है तो फिर मवेशियों के लिए चारे का संकट होगा और भले ही ज्वालामुखी फटने से उनकी मौत न हुई हो, लेकिन उसकी राख में उनका चारा खत्म होने से वो भूखे मर सकते हैं. दूसरा प्रभाव उन लोगों पर पड़ेगा जो सांस के मरीज हैं. इस ज्वालामुखी से निकली राख की जद में जहां-जहां की हवा आएगी, लोगों को सांस लेने में परेशानी होगी.
वैज्ञानिकों के लिए ज्वालामुखियों को और बेहतर ढंग से समझने का ये एक सुनहरा मौका है . वे समझने की कोशिश करेंगे कि 12 हजार साल से सोया ज्वालामुखी आखिर फटा क्यों. दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी जो ज्वालामुखी लंबे वक्त से खामोश हैं, उनकी खामोशी का राज क्या है.
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