एक जुलाई को दिए अपने आदेश में न्यायमूर्ति जोशी ने कहा कि केवल इसलिए कि कोई पुरुष व्यभिचार के आधार पर तलाक का दावा कर रहा है, यह अपने आप में ऐसा विशिष्ट मामला नहीं बनता जिसमें डीएनए जांच का आदेश दिया जाए.
मुंबई:बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि कहा कि सिर्फ इसलिए कि कोई पुरुष अपनी पत्नी पर व्यभिचार (विवाहेत्तर संबंध) का संदेह करता है, यह आधार नहीं बन सकता कि उनके नाबालिग बच्चे की डीएनए जांच कर यह पता लगाया जाए कि वह उसका जैविक पिता है या नहीं. नाबालिग लड़के की डीएनए जांच का निर्देश देने वाले एक पारिवारिक अदालत के आदेश को रद्द करते हुए न्यायमूर्ति आर एम जोशी ने कहा कि ऐसी आनुवंशिक जांच केवल आसाधारण मामलों में ही करायी जाती है.
क्या है मामला
यह मामला एक व्यक्ति द्वारा दायर तलाक याचिका से जुड़ा है, जिसमें उसने अपनी पत्नी पर व्यभिचार का आरोप लगाया था. दोनों की शादी 2011 में हुई थी और साल 2013 में वे अलग हो गए, उस समय महिला तीन महीने की गर्भवती थी. पति ने दावा किया कि बच्चे की डीएनए जांच से यह साबित किया जा सकता है कि वह उसका जैविक पिता नहीं है, जिससे उसके आरोपों को बल मिलेगा. हालांकि, याचिका में इसमें ये साफ नहीं किया गया कि पति ने कभी यह दावा किया हो कि वह बच्चे का पिता नहीं है. इसके बावजूद, फैमिली कोर्ट ने फरवरी 2020 में बच्चे की डीएनए जांच का आदेश दे दिया, जिसे महिला और उसके बेटे ने ऊपरी अदालत में चुनौती दी.
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