11 महीने पहले चंपारण की एक महिला अपनी 5 साल की बेटी शीतल और 3 महीने की बेटी संतोषी के साथ मायके जाने निकली थी. वो रास्ता भटक गई और गलती से महाराष्ट्र के नांदेड़ पहुंच गई. इस दौरान वह गहरे मानसिक तनाव में चली गई और अपनी पहचान तक नहीं बता पाई.
मुंबई:बिहार के चंपारण से निकली थी रक्षाबंधन मनाने, महाराष्ट्र के नांदेड़ पहुंच गई, बेटियों से बिछड़ी, मानसिक अस्पताल पहुंची और फिर 11 महीने बाद परिवार से मिलन हुआ. ये कहानी पढ़ते हुए किसी फिल्म से कम नहीं लगती, लेकिन है ये सच्चाई, ऐसी सच्चाई, जिसने हर किसी को भावुक कर दिया है.ये कहानी है बीरबल महतो और उनकी पत्नी की, जिनका परिवार तकरीबन एक साल पहले बिखर गया था. अब, जब रक्षाबंधन सिर पर है, उसी त्योहार से ठीक पहले पूरा परिवार फिर से एक हो गया है. यह मिलन सिर्फ एक पारिवारिक घटना नहीं, बल्कि समाज, प्रशासन और इंसानियत की साझा कोशिशों का खूबसूरत नतीजा है.
ऐसे बिछड़ गया था परिवार
यह सब शुरू हुआ था 11 महीने पहले, जब चंपारण की एक महिला अपनी 5 साल की बेटी शीतल और 3 महीने की बेटी संतोषी के साथ मायके जाने निकली थी. रास्ते में वह रास्ता भटक गई और गलती से महाराष्ट्र के नांदेड़ पहुंच गई. इस दौरान वह गहरे मानसिक तनाव में चली गई और अपनी पहचान तक नहीं बता पाई. बेटियां भी उससे अलग हो गईं. नांदेड़ की सड़कों पर भटकती इस महिला को पुलिस ने देखा और सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया, जहां उसका इलाज शुरू हुआ. फिर उसे पुणे के यरवदा स्थित मानसिक रोगियों के अस्पताल में शिफ्ट किया गया.
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