क्या धीरे-धीरे इमोज़ी ही हमारी भाषा बनती चली जाएगी? उसका अपना व्याकरण स्थिर हो जाएगा? क्या हम अक्षरों और शब्दों की दुनिया को पीछे छोड़ मुद्राओं और तस्वीरों से अपनी नई भाषा बनाएंगे?अभी यह बहुत दूर का सवाल है, लेकिन ताज़ा सच्चाई यह है कि अपने डिजिटल संवाद में हम लगातार इमोजी-निर्भर होते जा रहे हैं.
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