महाराष्ट्र एक बार फिर प्रयोग के लिए तैयार है. ये प्रयोग भी उद्धव ठाकरे ही करने जा रहे हैं. एनसीपी और कांग्रेस से हाथ मिलाने के बाद अब वो अपने चचेरे भाई राज ठाकरे के साथ राजनीतिक साझेदारी के लिए तैयार है. बीजेपी इसके लिए कितनी तैयार?
हिंदी के ख़िलाफ़ “ठाकरे भाइयों” की नज़दीकी ने क्या फडणवीस सरकार को डरा दिया? मॉनसून सत्र की शुरुआत से पहले ही “तीन भाषा नीति” को रद्द कर दिया गया. ऐसा लगा सरकार ने ठाकरे भाइयों के हाथ से मोर्चा-गठबंधन का मौक़ा छीन लिया. पर अब ठाकरे बंधु, विजय-सभा की तैयारी में हैं. दो दशक बाद हाथ मिले हैं, क्या दिल भी मिलेंगे? और मिले, तो फडणवीस सरकार के निकाय चुनाव के रास्ते कितने कठिन होंगे? फडणवीस कहते हैं, हमारी झुकने वाली सरकार नहीं, लोकतंत्र में सबकी सुनते हैं!
उद्धव और राज का आगे का प्लान
हिंदी पर महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार का यूटर्न, विरोध के सामने सरेंडर कहें या विरोधियों के हाथ से मुद्दा छीनने का मास्टरस्ट्रोक? उद्धव बोल रहे हैं, ठाकरे भाइयों से फडणवीस सरकार डर गई. सामना के कार्टून में ख़ुद और राज ठाकरे को टाइगर दिखाया. 5 जुलाई को भाई के साथ संयुक्त मोर्चे की तैयारी में बैठे उद्धव थोड़े परेशान से भी दिखे, कहा मराठी बंधु का मिलन ना हो, इसलिए डरकर फैसला वापस लिया गया. अब 5 को मोर्चा नहीं, जीत-सभा होगी. यानी विरोध का मुद्दा खत्म होने के बावजूद “ठाकरे-भाइयों” के साथ आने का मौक़ा छूटना नहीं चाहिए. इसके लिए बाकायदा चचेरे भाई राज ठाकरे को निमंत्रण भी भेजा जा चुका है.
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